'मनी लॉन्ड्रिंग' नामक शब्द ने भारत में राजनीतिक कोहराम मचाया हुआ है. भारत में, "मनी लॉन्ड्रिंग" को लोकप्रिय रूप में हवाला लेनदेन के रूप में जाना जाता है. भारत में यह सबसे ज्यादा लोकप्रिय 1990 के दशक के दौरान हुआ था जब इसमें कई नेताओं के नाम उजागर हुए थे.
मनी लॉन्ड्रिंग की परिभाषा:
मनी लॉन्ड्रिंग से तात्पर्य अवैध तरीके से कमाए गए काले धन को वैध तरीके से कमाए गए धन के रूप में दिखाने से होता है. मनी लॉन्ड्रिंग अवैध रूप से प्राप्त धनराशि को छुपाने का एक तरीका है। मनी लॉन्ड्रिंग के माध्यम से धन ऐसे कामों या निवेश में लगाया जाता है कि जाँच करने वाली एजेंसियां भी धन के मुख्य सोर्स का पता नही लगा पातीं है.
जो व्यक्ति धन की हेरा फेरी करता है उसको “लाउन्डरर” (The launderer) कहा जाता है. मनी लॉन्ड्रिंग में अवैध माध्यम से कमाया गया काला धन सफ़ेद होकर अपने असली मालिक के पास वैध मुद्रा के रूप में लौट आता है.
लॉन्डरिंग पैसे की प्रक्रिया में तीन चरण शामिल होते हैं (Process of Money Laundering)
1. प्लेसमेंट (Placement)
2. लेयरिंग (Layering)
3. एकीकरण (Integration)
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1. प्लेसमेंट (Placement)
पहला चरण के अंतर्गत नकदी के बाजार में आने से है. इसमें लाउन्डरर (The launderer) अवैध तरीके से कमाए गए धन को वित्तीय संस्थानों जैसे बैंकों या अन्य प्रकार के औपचारिक या अनौपचारिक वित्तीय संस्थानों में नकद जमा करता है.
2. लेयरिंग (Layering)
“मनी लॉन्ड्रिंग” में दूसरा चरण ‘लेयरिंग’ धन छुपाने से सम्बंधित है. इसमें लाउन्डरर लेखा किताब (Book of accounting) में गड़बड़ी करके और अन्य संदिग्ध लेनदेन करके अपनी असली आय को छुपा लेता है. लाउन्डरर, धनराशि को निवेश के साधनों जैसे कि बांड, स्टॉक, और ट्रैवेलर्स चेक या विदेशों में अपने बैंक खातों में जमा करा देता है. यह खाता अक्सर ऐसे देशों की बैंकों में खोला जाता है जो कि मनी लॉन्ड्रिंग विरोधी अभियानों में सहयोग नही करते हैं.
3. एकीकरण (Integration)
यह मनी लॉन्ड्रिंग प्रक्रिया का अंतिम चरण है. इस प्रकिया के माध्यम से बाहर भेजा पैसा या देश में खपाया गया पैसा वापस लाउन्डरर के पास वैध धन के रूप में आ जाता है. ऐसा धन अक्सर किसी कंपनी में निवेश,अचल संपत्ति खरीदने, लक्जरी सामान खरीदने आदि के माध्यम से वापस आता है.
मनी लॉन्ड्रिंग में कौन कौन सी गतिविधियाँ शामिल की जातीं हैं (Examples of Money Laundering)
मनी लॉन्ड्रिंग करने के कई तरीके हो सकते हैं जिनमे एक सबसे अहम् है “फर्जी कंपनी बनाना” जिन्हें “शैल कंपनियां” भी कहा जाता है. शैल कंपनियां एक वास्तविक कंपनी की तरह एक कम्पनी होती है लेकिन वास्तव में इसमें कोई संपत्ति नही लगी होती है और ना ही इनमें वास्तविक रूप में कोई उत्पादन कार्य होता है. दरअसल ये शैल कंपनियां केवल कागजों पर ही अस्तित्व में होती हैं वास्तविक दुनिया में नही.
हालाँकि लाउन्डरर इन कंपनियों की बैलेंस शीट में बड़े बड़े लेन-देनों को दिखाता है. कंपनी के नाम पर लोन लेता है, सरकार से टैक्स में छूट लेता है, आयकर रिटर्न नही भरता है और इन सब फर्जी कामों के माध्यम से वह बहुत सा काला धन जमा कर लेता है. यदि कोई थर्ड पार्टी वित्तीय अभिलेखों की जांच करना चाहती है, तो तीसरे पक्ष को धन के स्रोत और स्थान के रूप में जाँच को भ्रमित करने के लिए झूठे दस्तावेजों को दिखा दिया जाता है.
मनी लॉन्ड्रिंग के अन्य तरीकों में शामिल है; किसी बड़े मकान, दुकान या मॉल को खरीदना लेकिन कागजों पर उसकी कीमत कम दिखाना जबकि उस खरीदी गयी संपत्ति की वास्तविक बाजार कीमत कहीं ज्यादा होती है; ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि कम कर देना पड़े. इस प्रकार कर चोरी के माध्यम से भी काला धन जुटाया जाता है.
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एक अन्य तरीके से मनी लॉन्ड्रिंग तब होती है जब लाउन्डरर कई माध्यमों से अपना धन ऐसे देशों के बैंकों में जमा करा देता हैं जहाँ उसके खाते की जाँच का अधिकार किसी अन्य देश की सरकार को नही होता है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण स्विट्ज़रलैंड है जहाँ पर बड़ी संख्या में भारतीयों का काला धन जमा है जो कि मनी लॉन्ड्रिंग करके कमाया गया है.
भारत में मनी-लॉन्ड्रिंग के लिए कानून (Prevention of Money Laundering Act, 2002)
भारत में मनी-लॉन्ड्रिंग कानून, 2002 में अधिनियमित किया गया था, लेकिन इसमें 3 बार संशोधन (2005, 2009 और 2012) किया जा चुका है. 2012 के आखिरी संशोधन को जनवरी 3, 2013 को राष्ट्रपति की अनुमति मिली थी और यह कानून 15 फरवरी से लागू हो गया है. पीएमएलए (संशोधन) अधिनियम, 2012 ने अपराधों की सूची में धन को छुपाना (concealment), अधिग्रहण (acquisition) कब्ज़ा (possession) और धन का क्रिमिनल कामों में उपयोग (use of proceeds of crime) इत्यादि को शामिल किया है.
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PMLA, 2002 में आरबीआई, सेबी और बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDA) को पीएमएलए के तहत लाया गया है और इसलिए इस अधिनियम के प्रावधान सभी वित्तीय संस्थानों, बैंकों, म्यूचुअल फंडों, बीमा कंपनियों और उनके वित्तीय मध्यस्थों पर लागू होते हैं।
उपर्युक्त लेख के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मनी-लॉन्ड्रिंग की प्रक्रिया काफी जटिल और चालाकी भरी है जिसको रोकने के लिए सरकार को ज्यादा से ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से भुगतान के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास करना चाहिए.